बंगाल फाइल्स' एक ऐतिहासिक और समकालीन जांच-कथा , जो दंगों, साम्प्रदायिकता और सियासत की कड़वी सच्चाइयों को एक साथ जोड़ती है।

Edited By: Jay Dubey
Updated At: 28 September 2025 11:04:54

, साम्प्रदायिकता और सियासत की कड़वी

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द बंगाल फाइल्स': विवाद और विमर्श

'द बंगाल फाइल्स' विवेक अग्निहोत्री द्वारा निर्देशित एक विवादित और चर्चित हिंदी फिल्म है, जो उनकी 'फाइल्स ट्राइलॉजी' की तीसरी और अंतिम कड़ी है। इससे पहले वे ‘द ताशकंद फाइल्स’ और ‘द कश्मीर फाइल्स’ जैसी फिल्में बना चुके हैं। यह फिल्म 5 सितंबर 2025 को रिलीज़ हुई थी और इसके साथ ही राजनीतिक और सामाजिक हलकों में जबरदस्त बहस शुरू हो गई।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

फिल्म 1946 के 'डायरेक्ट एक्शन डे' और उसके बाद हुए 'ग्रेट कलकत्ता किलिंग्स' और नोआखाली दंगों पर आधारित है। यह घटनाएं भारत के स्वतंत्रता संग्राम और विभाजन से ठीक पहले बंगाल में हुए सांप्रदायिक दंगों को दिखाती हैं, जिसमें हजारों लोगों की जान गई थी। फिल्म में इन दंगों को 'हिंदुओं के नरसंहार' के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिससे यह आज के राजनीतिक परिदृश्य में भी प्रासंगिक बन जाती है।

कहानी की झलक

फिल्म की कहानी दो समानांतर टाइमलाइन में चलती है। एक सिरे पर आज का बंगाल है, जहां सीबीआई ऑफिसर शिवा पंडित (दर्शन कुमार) एक दलित लड़की की गुमशुदगी की जांच करते हैं। दूसरी तरफ, फिल्म दर्शकों को 1946 के अशांत बंगाल में ले जाती है, जहां युवा भारती बनर्जी (सिमरत कौर) अपने परिवार के साथ दंगों और हिंसा का शिकार होती है। ये दोनों कहानियां मां भारती (पल्लवी जोशी) के किरदार के जरिए आपस में जुड़ती हैं।

विवाद और राजनीतिक प्रतिक्रिया

फिल्म की रिलीज़ के साथ ही पश्चिम बंगाल में इसका विरोध शुरू हो गया। कई सिनेमाघरों ने फिल्म दिखाने से मना कर दिया, जिससे भाजपा ने राज्य सरकार पर 'अघोषित बैन' लगाने का आरोप लगाया। निर्देशक और निर्माताओं का कहना है कि उन्हें स्थानीय प्रशासन से धमकियां दी गईं, जबकि राज्य सरकार ने सभी आरोपों को नकारते हुए इसे वितरकों और थिएटर मालिकों का अपना निर्णय बताया।

सार्वजनिक और समीक्षकों की प्रतिक्रिया

फिल्म को लेकर दर्शकों और समीक्षकों की राय बंट गई है। कुछ इसे जरूरी और साहसी फिल्म मानते हैं, तो कुछ इसे प्रोपेगैंडा बताते हैं। विशेष रूप से सोशल मीडिया पर फिल्म की बहुत चर्चा रही है, जहां इसे लेकर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही प्रतिक्रियाएँ सामने आई हैं।

निष्कर्ष

'द बंगाल फाइल्स' केवल एक फिल्म नहीं, बल्कि इतिहास के एक संवेदनशील अध्याय को फिर से सार्वजनिक चर्चा में लाने का प्रयास है। जिस तरीके से यह मुद्दा सिनेमा, राजनीति और समाज में चर्चा का केंद्र बना है, वह इसकी प्रासंगिकता को और बढ़ा देता है।

 

 

 

 

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