आपातकाल 1975 की कहानी: जब भारत की लोकतांत्रिक आत्मा को सत्ता ने कुचल दिया
25 जून 1975 को लगाया गया आपातकाल भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का सबसे काला अध्याय था — जानिए वह समय, वह डर, और वह लड़ाई, जिसने संविधान को हिला दिया।

आपातकाल 1975: जब लोकतंत्र की सांसें थम गईं
भारत का संविधान दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की रीढ़ है। लेकिन एक समय ऐसा भी आया जब इस लोकतंत्र की आवाज़ को कुचल दिया गया, अखबारों की स्याही पर ताला लगा दिया गया और नागरिकों की आज़ादी पर बंदिशें लगा दी गईं। यह 25 जून 1975 की रात थी, जब भारत की जनता नींद में थी लेकिन सत्ता के गलियारों में लोकतंत्र की हत्या की स्क्रिप्ट लिखी जा रही थी।

सत्ता, संकट और साज़िश
उस समय देश की प्रधानमंत्री थीं इंदिरा गांधी। वह पहले से ही देश को बांग्लादेश युद्ध जैसी बड़ी जीत दिला चुकी थीं और जनता के बीच लोकप्रिय थीं। लेकिन जैसे-जैसे समय बीता, देश के हालात बदलने लगे। महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और शासन व्यवस्था की लापरवाही ने देश को उबाल पर पहुंचा दिया। लोग सड़कों पर उतर आए। सबसे बड़ा आंदोलन जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में खड़ा हुआ — “संपूर्ण क्रांति” का नारा देने वाले इस आंदोलन ने इंदिरा सरकार की नींव हिला दी।

और फिर आया एक झटका — 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के रायबरेली चुनाव को रद्द कर दिया और उन्हें 6 साल तक चुनाव लड़ने से वंचित कर दिया। ये फैसला इंदिरा गांधी को सत्ता से बाहर कर सकता था, और शायद यही वह बिंदु था जहाँ से लोकतंत्र को कुचलने की योजना बननी शुरू हुई।
अंधेरे की शुरुआत
25 जून की रात, राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने इंदिरा गांधी के कहने पर संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में “आंतरिक अशांति” के कारण आपातकाल घोषित कर दिया।
उसी रात, बिजली काट दी गई, प्रेस की मशीनें रुक गईं, और आदेश आया – “अब बिना अनुमति कुछ मत छापो।”
देश की नींद टूटी तो सुबह अखबारों की हेडलाइन थी – “देश में आपातकाल लागू।”

सरकारी मीडिया की हेडलाइन – “Emergency Declared” जैसे शब्दों ने लोकतंत्र की पहली चोट दी थी
मौलिक अधिकारों पर ताला
मौलिक अधिकार, जो हर नागरिक को जन्म से मिलते हैं, रद्द कर दिए गए।
- कोई कोर्ट नहीं जा सकता था।
- कोई गिरफ्तारी का विरोध नहीं कर सकता था।
- हर विरोध, हर रैली, हर लेख, हर आवाज – गुनाह बन गई।
नेताओं को रातों-रात उठा लिया गया।
- जयप्रकाश नारायण
- अटल बिहारी वाजपेयी
- लालकृष्ण आडवाणी
मोरारजी देसाई
सभी को बिना मुकदमे जेल में डाल दिया गया।गिरफ़्तारी की तस्वीर — जार्ज फर्नांडीस को बेड़ियों में देखा गया
अखबारों की आज़ादी छीन ली गई
“इंडियन एक्सप्रेस”, स्टेट्समैन, और तमाम अखबारों को बताया गया कि सरकारी सेंसर की अनुमति के बिना कुछ नहीं छपेगा। इंडियन एक्सप्रेस ने विरोधस्वरूप एक दिन संपादकीय पेज खाली छोड़ दिया। यह एक शांत लेकिन शक्तिशाली विरोध था।
नसबंदी और संजय गांधी की उग्र योजना
इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी सरकार की "छाया" बन चुके थे। उन्होंने 5 सूत्रीय कार्यक्रम चलाया:
- जनसंख्या नियंत्रण (नसबंदी)
- वृक्षारोपण
- साक्षरता
- दहेज विरोध
- झुग्गी हटाओ
लेकिन सबसे क्रूर था – नसबंदी। हज़ारों गरीबों को जबरन उठाकर ऑपरेशन करवा दिया गया। चाय के लालच में, राशन के बदले, या सरकारी दबाव में, कई बार बिना सहमति के पुरुषों की नसबंदी की गई।
नसबंदी का प्रचार — सरकारी जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम की कोशिश
न्यायपालिका की आत्मा का इम्तिहान
ADM जबलपुर केस (शिवकांत शुक्ल बनाम सरकार) :सुप्रीम कोर्ट में सवाल उठा: क्या नागरिक को जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार आपातकाल में भी रहेगा?
जवाब: नहीं।
चार जजों ने कहा — “अगर सरकार चाहे, तो नागरिक को बिना कारण कैद कर सकती है।”
सिर्फ एक जज — जस्टिस हंसराज खन्ना — ने असहमति जताई। उनकी यह टिप्पणी ऐतिहासिक बनी:
“मौलिक अधिकार लाशों के लिए नहीं, जीवित नागरिकों के लिए होते हैं।”

संविधान से छेड़छाड़: 42वाँ संशोधन
इसी दौरान 1976 में संविधान में सबसे बड़ा बदलाव किया गया —
- उद्देशिका (Preamble) में “समाजवादी” और “धर्मनिरपेक्ष” शब्द जोड़े गए
- मौलिक कर्तव्य जोड़े गए
- न्यायपालिका के अधिकार सीमित कर दिए गए
यह बदलाव उस समय किया गया जब संसद में विपक्ष नहीं था, और जनता डरी हुई थी। इसे लोग आज भी मिनी संविधान कहते हैं — जो सत्ता को बेतहाशा ताकत देता था।
और फिर आया 1977
जब इंदिरा गांधी ने सोचा कि अब देश उन्हें माफ कर चुका है, उन्होंने मार्च 1977 में चुनाव घोषित किए। पर जनता ने जो किया, वह लोकतंत्र की सबसे बड़ी वापसी थी।
- जनता पार्टी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की
- इंदिरा और संजय दोनों को हार का सामना करना पड़ा
- मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने
44वें संविधान संशोधन के माध्यम से यह तय किया गया कि अब आपातकाल लगाना बहुत मुश्किल होगा
संविधान में आपातकाल के प्रकार
भारत के संविधान में आपातकाल के तीन प्रकार हैं:
प्रकार | अनुच्छेद | स्थिति |
---|---|---|
राष्ट्रीय आपातकाल | 352 | युद्ध, आक्रमण, आंतरिक उपद्रव (अब: "सशस्त्र विद्रोह") |
राज्य आपातकाल | 356 | राज्य में संवैधानिक व्यवस्था का विफल होना |
वित्तीय आपातकाल | 360 | देश की वित्तीय स्थिरता पर संकट |
1975 का आपातकाल अनुच्छेद 352 के तहत लगाया गया था — जिसे बाद में 44वें संशोधन से सीमित किया गया।
सबक — जो आज भी ज़रूरी हैं
- लोकतंत्र कोई स्थायी गारंटी नहीं है, उसे हर दिन बचाना पड़ता है।
- मीडिया, न्यायपालिका, और नागरिकों की स्वतंत्रता ही लोकतंत्र के रक्षक हैं।
- जब सत्ता पर सवाल नहीं उठाए जाते, तब वह तानाशाही बन जाती है।
- और सबसे जरूरी — भय और चुप्पी, लोकतंत्र के सबसे बड़े दुश्मन होते हैं।
Times Bharat News द्वारा प्रस्तुत विशेष डॉक्यूमेंट्री: