मैं कहीं नहीं जाऊँगा”: क्यों Nitish Kumar बार-बार घोषित कर रहे हैं BJP-नेतृत्व वाले NDA के प्रति अपनी वफादारी

Edited By: Jay Dubey
Updated At: 28 September 2025 11:03:23

“मैं अब वापस आ गया हूँ, और अब कहीं नहीं जाऊँगा।

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मैं कहीं नहीं जाऊँगा”: क्यों Nitish Kumar बार-बार घोषित कर रहे हैं BJP-नेतृत्व वाले NDA के प्रति अपनी वफादारी

 बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को एक बार फिर दिल्ली की पिच पर भाजपा-नेतृत्व वाले NDA से अपनी अटूट निष्ठा जताई। पीएम नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा, “मैं अब वापस आ गया हूँ, और अब कहीं नहीं जाऊँगा।” यह भाषण   एक जनसभा के दौरान हुआ। 

नीतीश कुमार ने अपने राजनीतिक उतार-चढ़ाव की जिम्मेदारी उनके पार्टी के कुछ सदस्यों पर डाली, जिनके कारण उन्हें अलग-अलग समय पर दूसरे दलों के रुख़ अपनाना पड़ा। उन्होंने विशेष रूप से राजीव रंजन सिंह ‘ललन’ की ओर इशारा किया, जिन्हें उन्होंने लगभग दो साल पहले JD(U) का राष्ट्रीय अध्यक्ष पद सौंपा था। 

उनका कहना है कि उनके मन में वह समय था जब पार्टी के कुछ लोग सत्ता साझा करते हुए उथल-पुथल करते थे, जिससे उन्हें असहज महसूस होता रहा। लेकिन अब ऐसी स्थिति दोबारा नहीं आएगी, उन्होंने विश्वास जताया। 

यह दूसरी बार है कि गत पाँच महीनों में नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी में ऐसा आश्वासन दिया है। इससे पहले मई महीने में मधुबनी में एक रैली के दौरान उन्होंने कहा था कि वे हमेशा इसी हिस्से में रहेंगे। पार्टी ने उन्हें पहले “यहाँ-वहाँ” जाने के लिए मजबूर किया था, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। 

नीतीश कुमार ने उल्लेख किया कि भाजपा-JD(U) की पहली सरकार बिहार में 2005 में गठित हुई थी। उन्होंने स्वीकार किया कि कुछ क्षणों पर उन्होंने पार्टी के सदस्यों के इशारों पर रास्ता बदला, लेकिन यह सब अब पीछे छूट चुका है। 

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो वर्तमान समय उनके लिए चुनौतियों भरा है। 2025 विधानसभा चुनावों से पहले सीटों के बंटवारे में पार्टी की 2020 की स्थिति को लेकर दबाव है। इसके अलावा विपक्षी दलों द्वारा उनकी उम्र और स्वास्थ्य को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। 

लेकिन नीतीश कुमार के प्रभाव, विशेषकर महिलाओं मतदाताओं के बीच, और EBCs (अत्यंत पिछड़े वर्गों) के बीच उनकी लोकप्रियता अभी भी उनकी साख मजबूत करती है। वहीं, भाजपा के लिए भी उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है — उन्हें चुनावी गय़र-बयानबाजी से हटाना नहीं चाहती, क्योंकि चुनाव के परिणामों पर उनका असर होगा। 

 

 

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