क्या बिहार के विधायक और सांसदों का समीकरण बदलेगा? उपेंद्र कुशवाहा की पटना रैली ने उठाए गंभीर सवाल

Edited By: Jay Dubey
Updated At: 28 September 2025 11:04:54

क्या बिहार में विधानसभा और लोकसभा की सीटों का मास्टर प्लान बदलेगा?

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क्या बिहार के विधायक और सांसदों का समीकरण बदलेगा? उपेंद्र कुशवाहा की पटना रैली ने उठाए गंभीर सवाल
क्या बिहार में विधानसभा और लोकसभा की सीटों का मास्टर प्लान बदलेगा? क्या 50 साल से रुके परिसीमन (डीलिमिटेशन) के बाद बिहार को उसकी वाजिब सीटें मिलेंगी? उपेंद्र कुशवाहा ने 5 सितंबर 2025 को पटना के मिलर ग्राउंड में एक बड़ी रैली कर इस पराक्रमी सवालों को फिर से तानेबाने के बीच रखा। लेकिन क्या उनके नीतिगत दावे गरीबों और पिछड़ों के लिए नए अवसर बनेंगे या फिर राजनीतिक शोर-शराबे में खो जाएंगे?

5 सितंबर का पटना सभा: क्या था संदेश?
5 सितंबर को उपेंद्र कुशवाहा ने पर्यावरणीय मुद्दों, विकास के अधिकारों और सबसे अहम विषय परिसीमन को लेकर बिहार की सियासत में एक बड़ा कदम उठाया। यह दिन शिक्षक दिवस होने के साथ-साथ बिहार के प्रतिष्ठित पिछड़ा नेता जगदेव प्रसाद की शहादत दिवस भी था। क्या यह संयोग मात्र था कि उपेंद्र कुशवाहा ने इस ऐतिहासिक मौके पर अपनी आवाज बुलंद की?

पटना रैली का मकसद स्पष्ट था—बिहार को 40 की बजाय 60 लोकसभा सीटें देने की मांग करना, जो जनसंख्या के अनुपात में न्याय संगत हो। उपेंद्र कुशवाहा ने चुनाव आयोग के SIR (विशेष गहन पुनरीक्षण) पर सवाल उठाए और विवादित रूप से राहुल गांधी के वोटर अधिकार यात्रा की भी आलोचना की। क्या यह विरोध भाजपा और एनडीए की ही राजनीति की परिधि में था, या स्वतंत्र विचारों की पहचान?

क्यों 50 साल का विलंब?
क्या बिहार का प्रतिनिधित्व पिछले पचास वर्षों से महत्वहीन बना दिया गया? उपेंद्र कुशवाहा के अनुसार, 1971 के बाद राज्य के निर्वाचन क्षेत्रों के पुनःनिर्धारण पर रोक लगी हुई है। इसी वजह से बिहार, उत्तर भारत के बड़े हिस्सों की तरह, संसदीय सीटों और विकास निधियों से वंचित रहा है। क्या यह केवल प्रशासनिक लापरवाही है या राजनीतिक साजिश?

राजनीतिक संग्राम: क्या उपेंद्र कुशवाहा की रणनीति एनडीए के भीतर प्रभावी होगी?
पिछली रैलियों के बाद 5 सितंबर की पटना सभा ने क्या एनडीए में सीटों के बंटवारे को प्रभावित किया? उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि एनडीए में सीट बंटवारा मुख्यतः भाजपा और जदयू के बीच होगा, लेकिन अन्य सहयोगी जैसे उनकी पार्टी को भी हक मिले। क्या उनका यह दबाव बिहार के आगामी विधानसभा चुनावों की दिशा बदलेगा?
कुछ विश्लेषण बताते हैं कि कुशवाहा के तेवर भाजपा और गठबंधन के मामलों के बीच कहीं संतुलन साधने की कोशिश हैं, लेकिन यह कितना सफल होगा?

क्या बिहार की राजनीति में उपेंद्र कुशवाहा का यह कदम निर्णायक होगा?
क्या 5 सितंबर की पटना रैली उपेंद्र कुशवाहा के लिए राजनीतिक मजबूती और पिछड़े वर्ग के हकों की लड़ाई में मील का पत्थर साबित होगी? क्या बिहार की जनता इस आंदोलन को पर्यावरण, विकास और राजनीतिक न्याय के लिए नए सवेरे की शुरुआत मानेगी?
कुशवाहा ने स्वयं संकेत दिए हैं कि यदि कोई 'आत्मघाती कदम' नहीं उठाया गया, तो एनडीए बिहार विधानसभा चुनाव 2025 जीत सकती है। क्या यह आग बुझाने की रणनीति है या किसी बड़े बदलाव की तैयारी?

यह लेख उपेंद्र कुशवाहा के पटना रैली 5 सितंबर 2025 के घटनाक्रम और परिसीमन मुद्दे पर उनकी राजनीतिक स्थिति को एक जांच-पड़ताल-सी नजर से देखता है। क्या बिहार के चुनावी समीकरणों में बदलाव आएगा? क्या पिछड़ों के लिए न्याय मिलेगा या यह सियासी बयानबाजी बनकर रह जाएगा? ये सवाल आज बिहार की राजनीति में गूंज रहे हैं।

Jay Dubey, [06-09-2025 22:07]
 

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