लोकल के वोकल में राजनीति का अस्तर बिहार विधानसभा चुनाव 2025

Edited By: Jay Dubey
Updated At: 13 November 2025 08:35:48

बिहार का चुनाव किस ओर जा रहा है

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बिहार चुनाव किस ओर जा रहा है?
बिहार की राजनीति एक बार फिर उथल-पुथल के दौर में है। गठबंधन की राजनीति, जातीय समीकरण, और विकास के वादों के बीच जनता का मूड धीरे-धीरे बदलता दिखाई दे रहा है।

बीते कुछ वर्षों में राज्य की सियासत कई करवटें ले चुकी है। सत्ता की कमान बदलने के साथ-साथ भरोसे और नाराज़गी दोनों की लहरें देखने को मिलीं। अब जब चुनाव का माहौल बन रहा है, तो हर दल अपनी रणनीति नए सिरे से तैयार कर रहा है।

राजनीति का अस्तर दो धूरी मे दिखाई दे रहा है केंद्र की राजनिति अब् राज्य की राजनिति पर हावी है। मसलन प्रधानमंत्री का धुआंधार प्रचार जिस पर केंद्र की योजना का चित्र दूसरे तरफ जमीन से जुड़ी हुई लोकल मुद्दा  का अंदेखि। क्या यह संकेत देता है की अब लोकल का वोकल राजनिति मे संभव नही। इसके साथ टिकट देकर उमीदवार को थोपना।

भाजपा की रणनीति
भारतीय जनता पार्टी इस बार ज़्यादा सावधानी से आगे बढ़ रही है। पिछले चुनावों से मिले सबक के बाद वह अब अकेले दम पर अधिक सीटें जीतने की तैयारी में है। पार्टी नेतृत्व यह समझ चुका है कि स्थानीय मुद्दों, युवाओं की बेरोज़गारी, और बुनियादी ढांचे की मांगों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।

सहयोगी दलों की चुनौती
गठबंधन की राजनीति बिहार में हमेशा निर्णायक रही है, लेकिन अब उसके भीतर दरारें साफ दिखने लगी हैं। कुछ पुराने सहयोगी अपनी शर्तों और सीट बंटवारे को लेकर असंतोष जता रहे हैं। इससे भाजपा को अपने संगठन और प्रचार अभियान को और मज़बूत करने की ज़रूरत महसूस हो रही है।

विपक्ष की चाल
दूसरी ओर विपक्ष ने भी अपनी रणनीति को धारदार बनाया है। वह महंगाई, बेरोज़गारी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी जन-मुद्दों को सामने रखकर सत्ता पक्ष को घेरने की कोशिश कर रहा है। ग्रामीण इलाकों में जातीय समीकरणों का फायदा उठाने की योजना भी बनाई जा रही है।

सामाजिक समीकरण
बिहार की राजनीति में जाति-आधारित वोट बैंक हमेशा से अहम रहा है। ऊँची जातियों, पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यकों का संतुलन तय करेगा कि अंततः जनमत किसके पक्ष में जाएगा। युवाओं और पहली बार वोट डालने वाले मतदाताओं का प्रभाव भी पहले से कहीं ज़्यादा माना जा रहा है।


निष्कर्ष
बिहार इस बार केवल सत्ता परिवर्तन की नहीं, बल्कि सोच और दिशा तय करने की दहलीज़ पर खड़ा है। जनता अब ऐसे नेतृत्व की तलाश में है जो न सिर्फ़ वादे करे बल्कि परिणाम भी दिखाए। कौन-सी पार्टी उस भरोसे पर खरी उतरती है, इसका फैसला आने वाले चुनाव में होगा।

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